शुरू शुरू में नुक्कड़ में लोग मेरी ख़ैरियत पूछते हैं।
जब यारों से मिलता हूँ, तो मेरी क़ैफ़ियत पूछते हैं।
वक़्त इंसान को बदल ही देता है, राशिद -
आजकल वही लोग सिर्फ मेरी हैसियत पूछते हैं।
मेरी कमाई हुयी इज़्ज़त का क़दर कोई नहीं करता
बस, मेरी तिजोरी की ही असलीयत पूछते हैं।
उनके पास आलीशान मकानें हैं -फिर भी
बार बार ताज महल की खासियत पूछते हैं।
हर रोज़ आईने के सामने खड़ा रहकर
न जाने क्यूँ अपनी ही शख्सियत पूछते हैं।
ज़माना मतलबी हो गया है - यहां तक कि
उधर भगवन राम का भी वसीयत पूछते हैं।