Sunday, December 22, 2024

सुकूं का रस्ता

मुझे सुकूं का रस्ता कभी न दिख सका था,

जहां था मेरा सपना, वही पे खो चुका था।

मैं एक शक्ल थी जो अधूरी रह गई थी,

कभी जो रंग सच्चा, उसी को भूल चुका था।


मैं चल रहा था हरदम बग़ैर ठिकाना कोई,

कभी न घर बसाने का हौसला रखा था।


खुदा ने तुझसे मुझको मिला दिया यकायक,

मगर तुझे मैं पाने का ख्वाब कहाँ  रखा था


मुझे यकीं था दूरी मेरे नसीब में थी,

तेरा करम कि रस्ता खुदा बना चुका था।


तेरी नजर ने वो कर दिखा दिया अचानक,

जो मैंने सोच रखा था, सब बदल चुका था।


तेरे बिना कोई दिन खुशी से काटता क्या,

तेरी हंसी का जादू मेरे लिए बचा था।


"मनन" के दिल में गम का अंधेरा था हमेशा,

तेरे कदम से देखा, जहां निखर चुका था।

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