हाल-ए-दिल कैसे सुनाऊँ
इश्क़ की कोई तजुर्बा नहीं
निगाहें मिली, बस, बिजली चली
जहां कोई तार-ए-ताम्बा नहीं
यह हमारी प्यार की इमारत है
ठूठे ख़्वाबों की मलबा नहीं
प्यार किया तो अब डरना क्या
हाथ थामने में झिजक तौबा नहीं
नोचना मुझे फिर एक बार
यक़ीन नहीं है तुम कोई लाइबा नहीं
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