Sunday, February 23, 2020

हितैषी


तेरी क़दमों में मेरी इश्क़ की सरफ़रोशी हो।
ग़ुल-भरी दुनियाँ में तुम इक अनोखा ख़ामोशी हो।
बहती हुई नदी से कुआँ कभी भरता नहीं
मेरी दुनियाँ-ए-दिल में तुम खाना बदोशी हो। 

मैख़ाने में आजकल मेरा कुछ काम नहीं
मेरी जाम-ए-दिल की तुम मदहोशी हो।

तेरी क़ुरबत का असर को क्या मिसाल दूँ
ज़ख़्म भरा दिल की इक छोटी सी ख़ुशी हो।

मेरे उजड़े रातों की अब फ़िक्र नहीं, अंजुम
मेरे काले अँधेरे फलक की तुम आरुषि हो।

गुलाब को ख़ुश्बू देना सिखाना है नहीं,
सुकून देने में जो तुम हमेशा विदुषी  हो।

बारिश-ए-ज़ख्म अब मुझे नहीं बिगड़ेगी
मेरे दिल-ए-ग़म की अब तुम हितैषी हो।


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