Saturday, July 29, 2017

तकिया ही जाने


दिल की अधूरी कितना, यह साखिया ही जाने
बेखुदी का मक़्सत क्या है , यह बादिया ही जाने।

पत्थरों को भी रेत बना लेते हैं अंजुम, पर
टकराव का दर्द क्या है, यह दरिया ही जाने।

तेरी झुकती उठती नज़रें पैग़ाम सारी देते आये
पलकों की क़ीमत क्या है, यह अखियां ही जाने।

रोकर दिल को हल्का ज़रूर कर देता हूँ, पर
अश्कों की भारी क्या है, यह तकिया ही जाने। 

1 comment:

Murali said...

Randomly went through your blog and found it very interesting. You cover a whole rainbow of topics from Stock Market to Self realisation. Continue the good work. I loved reading your Panchakacham experience and also your rejoinder to DEVDUTT. By the way I am a good friend (not sure whether he will acknowledge however) of Mohan alias Swaminathan of Andhakudi. Was surprised to know that he is related to you. Continue blogging.

Murali

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