तेरे ही याद में मेरे दिन खुल जाते हैं
सारे ग़म-ए-ज़िन्दग़ी यूँ ही फिसल जाते हैं||
दुआं हैं की तुम ज़्यादा ज़ख़्मी न हो जाओ
मेरे तीर-ए-यादें बेक़ाबू निकल जाते हैं||
साक़ी का जाम अब बेसूद हो गया है
तेरा स्वाद-ए-मेहँदी से हम उछल जाते हैं||
मेरी ख़्वाबों में अक़सर फिरता रहो सनम
मेरी तनहा रातें दिन में बदल जाते हैं||
Dilip
No comments:
Post a Comment