भोर धरा पर चमका रवि, बालक ने फल जान लिया।
उछल पड़ा आकाश चढ़ा, सूरज को सम्मान लिया॥
देव सभा में हलचल मची, इन्द्र ने वज्र संधान किया।
बालक गिरा धरा की ओर, व्योम ने क्रोध प्रकट किया॥१॥
वायुदेव ने वायु रोकी, सृष्टि सभी मूक हो गई।
पीड़ा से व्याकुल जग सारा, धरा भी धूसर हो गई॥
देवताओं ने मिलकर तब, बालक को वरदान दिया।
अजर-अमर बल, बुद्धि विभा, जीवन नव संज्ञान दिया॥२॥
ब्रह्मा ने रक्षा का वर, शिव ने दिया अजेय तन।
इन्द्र ने वचन दिया पुनः, वज्र न छू पाए अब तन॥
वरदानों से दमक उठा, हनुमत का निर्मल मन।
चेतन होकर फिर बढ़ा, सेवा का नव उत्सव बन॥३॥
सूर्य न खाया, लक्ष्य बनाया, प्रेम-पथ का अनुचर।
रामनाम में लीन हुआ, बनकर भक्ति का सागर॥
बाल-लीला यह प्रेरणा, जीवन में दीप जलाए।
हनुमत जय का यह संदेश, हर उर में प्रीति जगाए॥४॥
No comments:
Post a Comment