Friday, February 16, 2024

आँखों को कहने दो

दरिया-ए-जज़बात  दिल में और थोड़ा बहने दो 

मुंह जो बात कह ना सके, आँखों को कहने दो। 


अब उसको घर की किराय पूरा बच जायेगी 

मेरी आँखों में समा गयी है, आँखों में ही रहने दो।


जानना है, ज़ख्म-ए-प्यार दर्दभरे हैं, या फिर मीठे 

ख़ैर, इस दर्द-ए-मोहब्बत को जी भरके सहने दो। 


मदहोशी आँखें मुझे बेख़ुदी कर दिये हैं 

होश में नहीं आना है, जाम को और भरने दो।


तोहफ़े में देने लायक कुछ भी मेरे पास नहीं 

बस, एक दिल बचा है, उसके नाम करने दो।


- दिलीप 

 

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 काश मैं पवन बन पाता — निशब्द, निश्छल, निराकार, तेरे अंगों से गुजरता, जैसे मंत्र से होकर गुजरता हो सार। तेरी केश-रेखाओं में बिखरता चन्द्रिका...