Saturday, July 18, 2020

मेहकी शायरी

एक आरज़ी झलक में लगता है, तुम सुनहरी हो। 
पर दिल की गहराईयों में इश्क़ की चिंगारी हो। 

मेरी क़ुरबत तुहें उतना ही सुकून देगी, जितना
सर्दी में तेरा ठंडा बदन पर मुलायम सँवरी हो।

उसको सुर्खी लगाने की अब क्या ज़रुरत है
जिसकी होटें पहले ही से मद भरी हो।

तेरी रंग-ओ-रूप को लेकर तुम मायूस क्यूँ हो
नज़रिया अगर ठीक़ हो, तो तुम वाक़ी सुंदरी हो।

पहाड़ों को पार कर दी, अब हमवार रास्ता सामने है
दुआ करता हूँ, तेरी ज़िन्दगी हमेशा रस भरी हो।

उलझन में हूँ, इस शनासाई का क्या नाम दूँ , पर
इस वीरान दिल में तुम हमेशा एक मेहकी शायरी हो।

Dilip

सँवरी = sweater



Friday, July 17, 2020

चिंगारी में जलने के लिए

पता था लोग मिलते हैं, बिछड़ने के लिए।
दिल फिर क्यूँ तरसता है, मिलने के लिए।

फूल जानते हैं चंद दिनों में ही मुरझा जाएंगे,
फिर भी सूरज की राह देखते हैं, खिलने के लिए।

उल्फत का भण्डार है मेरा दिल, फिर भी 
तैयार है ज़िन्दगी, मेरा प्यार को तुलने के लिए।

पत्थर-ओ-इश्क़ से टकरा चुका हूँ कई बार, यारों  
अब सीखना नहीं, गिरकर फिर संभलने के लिए।

बार बार हारने के बावजूद मेरा प्यार जारी रहेगा -

परवाने पैदल होते हैं, चिंगारी में जलने के लिए।

इन बे-नमी आँखों को चार बूँद अश्क़ उधार चाहिए 
शौख़ है अब भी, इश्क़ के नाम बहलाने के लिए।

 




Saturday, July 11, 2020

Artists

यह वह लोग हैं, जिनके नीयत बुलुंद हो।
पर जिनके चलन में डेर सारी पाबन्द हो।

उनकी हरकतों से उनपर नफरत हो जाता है
चाहे जितना भी उनके पेशकश हमें पसंद हो।



Sunday, July 5, 2020

शनासाई

अक़्सर अपना ग़म छुपाता हूँ मुक्सुराई से।
बेहद मोह्ब्बत करने लगा हूँ तन्हाई से।
मेरे चेहरे में कुछ दाग़ है तो बताओ, यारों ,
घर का आईना तोड़ दिया हूँ, डरके रुस्वाई से।

कमज़ोर पुकार को सुनने की गुंजाइश नहीं तुम्हें 
मेरी आवाज़ जो उठती है दिल की गहराई से।

और क्या देखने को बाक़ी है, राशिद,
जी भर गया है, क़यामत की पज़ीराई से।

सराहों के कंदों को कुछ काम नहीं यहां
मुझे ख़ुदा भी बचा न पायेगा धराशाई से।

मैं मिलनसार माना जाता हूँ महफ़िल में
पर दूर रहता हूँ खुद की शनासाई से।

Dilip


मिलनसार -sociable
शनासाई - acquiantence
पज़ीराई - spectacle, entertainment
धराशाई - crash, mighty fall

Saturday, July 4, 2020

तुलू-ए-जाम

तेरी हर इशारे में हज़ारों पैग़ाम हैं।
तुम्हें अपनाना मेरा रोज़ाना काम है।

तेरी शहर से दूर चला गया हूँ, फिर भी
तुम्हें भूलने की हर कोशिश नाकाम है।

तुम्हारी याद में कितनी रातें गवाई मैंने
हमारा प्यार मेरे लिए क़ीमती मकाम है।

दिल की गहराइयों में तुम्हें चुपके मिलना है 
पर लगता है कि यह सब सर-ए-आम है। 

शाम अभी जवान है, न जाओ हमें छोड़कर
ऐसे भी जल्दी क्या, यह तुलू-ए-जाम है।

Dilip

तुलू-ए-जाम - beginning of drinking
सर-ए-आम  - in Public

How can India aspire to be a thought-leader?

Two seemly disjointed happenings triggered this article today.  One – I was walking down an old alley here in Singapore, where a signage in ...