इस गेहरा समँदर-ए-दिल का किनारा तुम हो
इन ख्वाब-भरी आँखों का नज़ारा तुम हो
कितना भी कोशिश करूँ तुम्हे भूलने की
सुबह जब पलक खुलती तो दुबारा तुम हो
गर्दिश-ए-दिल में सितारें कम नहीं - पर
मेरी सूनी अफ़क़ में टूटा तारा तुम हो
तन्हाई में तड़पने की गुंजाइश अब हमें नहीं
हर सांस में मह्सूस है, अब हमारा तुम हो
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