उसके ऊपर मेरा हर तहरीक नाकाम हो गया।
यारों के बीच में मेरा घोर बदनाम हो गया।
निकला तीर-ए-नज़र-ए-प्यार आँखों से , मगर
मुझे पहुँचते ही वह बेग़रज़ का पैग़ाम हो गया।
चाहा था उसके दिल में बस थोड़ी ही जगह
पर, वीराने का पूरा शहर मेरे नाम हो गया।
आग़ाज़ प्यार का था मगर, पर, न जाने कब
उल्फत का इस रास्ते में नफरत अंजाम हो गया।
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