पहचान लो फ़र्क़ , ग़रीब और अमीर में।
वही झेलते हैं, जो लिखा है तक़दीर में।
मक़ाम-ए-सफल कैसे पायेगा बेचारा, जब
पैर बांधे हुए हैं हालात के ज़ंजीर में।
खराब कमान-ए-तक़दीर से मक़्सत फिसलता है
कोई गुनाह नहीं , राशिद, मेहनत की तीर में।
इस दिल ग़मों की काँटों से बहुत फट चुकी है
लागे रहो ज़िन्दगी भर, उस रफू की तदबीर में।
ख्वाब-ए-तरक़्क़ी देखो दिन-ओ-रात, और
बस, खुश रहो, उसी ख्वाब की ताबीर में।
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