कभी देखूँ उसे दिल में उतर है उसकी अदा।
मिरी जज़्बात को छूती सफ़र है उसकी अदा।
वो उलझी शाम आई और बोली — सोच ले।
तुझे ले जाए ये कैसी ख़बर है उसकी अदा।
कभी रुक कर कभी फिर मुस्कराकर कह दिया।
मिरी बर्बादियों में भी असर है उसकी अदा।
कभी कहती है चल अब दूर एक रक़्स कर।
मिरी आँखों में बसती इक नज़र है उसकी अदा।
कभी कहती है चुप रह बस यहाँ अब बैठ जा।
मिरे हर ख्वाब का अब मुक़द्दर है उसकी अदा।
"मनन" कहता है वो मिलने चले दिल थाम ले।
मिरी हर साँस में बसता बसर है उसकी अदा।
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