इक और फ़लक है, रोशन है सब कुछ यहाँ से —
छोड़ अँधेरे, आबादियों के जहाँ से, बहारों में।
रोशन है इक धूप, नर्म सी बाँहों में छुपी —
भूल के साए, ग़म के हर एक निशान से, बहारों में।
वीरान जंगल, सूखे हुए सब्ज़ रंग भूल जा —
हर शजर है यहाँ गुल से जवाँ से, बहारों में।
सन्नाटा बोलता है उधर, यहाँ गीत है —
सुनता हूँ मैं मधुर मध-मख़ान से, बहारों में।
ख़ामोशियों में भी यहाँ है सुरों का रंग —
फूल बोलते हैं सब ज़बान से, बहारों में।
यहाँ न है कोई सर्द हो के उदासी मिले —
फूल हैं खिलते हर मौसम-ए-अन से, बहारों में।
तू मेरा भाई है, मेरी दुआओं का नूर तू —
खुशबू से भर दे अपनी उड़ान से, बहारों में।
"मनन" के बाग़ में है आबादियों का नशा —
बे-ख़ौफ़ चल के हर इम्तिहान से, बहारों में।
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