Sunday, June 21, 2015

लकीरें




मेरी  हाथ की लकीरें बड़ी बेवफा निकले हैं
जिंदगी की इस मोड पे दोखेबाज़ निकले हैं
जब लगा कि  मेरी सारे तकलीफ़ें खतम हुई
नक़ाब को फाड कर नये लकीरें निखले हैं

पता नहीं था कि मेरी उलझे लखीरों को क्या करूं
सोच लिया था कि उन्हीं से बाकी जीवन सवर करूं
एक बीमारी के बाद फरिश्तों ने नया लकीरें दिला दी
एक पल के लिए लगा, इन लकीरों को लेके  में क्या करूं

है कुछ आधे, है और कुछ अधूरी, इन लकीरों में
मेरी अरमानें और ख्वाइशें छुपे थे  इन्ही लकीरों में
दुआ मांग रहा था उन्हें पूरी हो जाने की, मगर
खुदा ने नये लकीरें और नयी उम्मीदें दिला दी

अब वह कटी हुयी लकीर नयी उमंगों की निशानी है
वह  टेढी लकीर अब लगता है की उन्नति की कहानी है
बस कितना भी नये लकीरें कींचने दो,
भरोसा है किआनेवाला पल ज़रूर सुहानी ही सुहानी है

❤D





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