छतरी के नीचे भी भीगा दो, तेरी होटों की नमी से।
इक ठंडी सी आग में जला दो, तेरी क़ुर्बत की कमी से।
अपनी खोयी हुई दिल को और कहीं ढूंढो मत,
वह बरक़रार है, कभी लौटेगी नहीं हमीं से।
न जाने मेरे अंदर इतना बरहमी क्यूँ
आओ, उसे यूँ बुझा दो, अपनी शबनमी से।
मेरी इश्क़ को साथ-ही अपना लो सनम, इस
ज़ख़्मी-ए-निगाह दिल को बचाओ, और ज़ख़्मी से।
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