Saturday, April 12, 2025

बेख़ुदी का ज़माना

 

मैख़ाने में यूँ घुसा तो मेरे सामने पैमाना आ गया

साक़ी के इक इशारे से बेख़ुदी का ज़माना आ गया। 


सीने में दबी चिंगारी जब सांसों में धड़की बनकर

तेरी नज़र के जादू से जलता हुआ परवाना आ गया। 


बरसों की ख़ामोशी जब भी गूँगी सदा में ढलती थी

तेरी सदा के नक़्शों से फिर कोई अफ़साना आ गया। 


सूनी डगर पे जब तेरी यादों ने दीप जलाए थे

वीरान दिल की चौखट पर फिर कोई बेगाना आ गया। 


बिखरे थे ख़्वाब रेतों पर, बादल भी थे बे-रंग वहाँ

तेरी नमी के छूने से भीगा हुआ तराना आ गया। 


दर्द के गर्दिशी लम्हों में इक रौशनी सी जाग उठी

तेरे उजाले के संग फिर जीने का बहाना आ गया। 


"मनन" ने जब भी चाहा था तनहाई से गुफ़्तगू करना

लब थरथराए, अश्क बहे, फिर तेरा फ़साना आ गया। 


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