Friday, July 23, 2021

ख्वाब की ताबीर में

पहचान लो फ़र्क़ , ग़रीब और अमीर में। 

वही झेलते हैं, जो लिखा है तक़दीर में। 


मक़ाम-ए-सफल कैसे पायेगा बेचारा, जब 

पैर बांधे हुए हैं हालात के ज़ंजीर में।


खराब कमान-ए-तक़दीर से मक़्सत फिसलता है 

कोई गुनाह नहीं , राशिद, मेहनत की तीर में।  


इस दिल ग़मों की काँटों से बहुत फट चुकी है 

लागे रहो ज़िन्दगी भर, उस रफू की तदबीर में। 


ख्वाब-ए-तरक़्क़ी देखो दिन-ओ-रात, और 

बस, खुश रहो, उसी ख्वाब की ताबीर में।

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