अंधों के सामने दिया कुछ दिखाया न करो।
ज़ख़्मी सीने पे ख़ंजर चलाया न करो।
चिराग़ में जलने की क़िस्मत है परवाने को
उसे और जीने की इच्छा दिलाया न करो !
शिद्दत-ए-शोले -ए-जज़्बात है दिल में
इस वक़्त हवा को बुलाया न करो।
उसकी आँखों में और नमी नहीं
उसे अब और रुलाया न करो।
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