जाने कौन रह गया है भीगने से शहर में
जिसके लिए लौटती है रह रहकर बारिश फिर से।
हिन्दुस्तान का ज़माना आया है दुबारा , यारों
आसमान खोलकर बता रहा है गर्दिश फिर से।
कल के ख़्वाबों में आज को खोना नहीं है
आओ लपेट लें इस मौका-ए-गुंजाइश फिर से।
वक़्त की लहरें मिटा दी हैं साहिल में पहचान, देश की
अब क़दमों के निशाँ छोड़ने की है गुज़ारिश फिर से।
जय हिन्द!
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