न जाने किसको आँखों ने खोजता गया।
मुसाफ़िर-ए-आरज़ू हूँ, तो भटकता गया।
उसको कभी खोना नहीं था -तो
उसका नाम साँसों से लिपटता गया।
उसकी क़दमों की निशान ताक़तवर हैं कि
मंज़िल को भूलकर रस्ते को बदलता गया।
उन शबनमी आँखों को भूलने की कोशिश में
दिन रात अपना दिल को जलाता गया।
बे-रूखी वफ़ा को सब्र न कर सका ,
घर किराए का था , बदलता गया।
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