मैख़ाने में यूँ घुसा तो मेरे सामने पैमाना आ गया
साक़ी के इक इशारे से बेख़ुदी का ज़माना आ गया।
सीने में दबी चिंगारी जब सांसों में धड़की बनकर
तेरी नज़र के जादू से जलता हुआ परवाना आ गया।
बरसों की ख़ामोशी जब भी गूँगी सदा में ढलती थी
तेरी सदा के नक़्शों से फिर कोई अफ़साना आ गया।
सूनी डगर पे जब तेरी यादों ने दीप जलाए थे
वीरान दिल की चौखट पर फिर कोई बेगाना आ गया।
बिखरे थे ख़्वाब रेतों पर, बादल भी थे बे-रंग वहाँ
तेरी नमी के छूने से भीगा हुआ तराना आ गया।
दर्द के गर्दिशी लम्हों में इक रौशनी सी जाग उठी
तेरे उजाले के संग फिर जीने का बहाना आ गया।
"मनन" ने जब भी चाहा था तनहाई से गुफ़्तगू करना
लब थरथराए, अश्क बहे, फिर तेरा फ़साना आ गया।