अपनी अरमान को तस्वीर-ए-खंजर बना दी।
इस नक़्श में एक खूबसूरत मंज़र बना दी।
ख़ैर, अपना आशिक़ के साथ नाचते नाचते
न जाने, कितने दिलों को बंजर बना दी।
इस अँधेरे दिल में अपनी रंगों के मुनव्वर से
एक हसीं रात के पिछले पहर बना दी।
इश्क़ के सफर में अब अंधेरा नहीं डाँटेगा
दिये जलाकर जो एक नया डगर बना दी।
इन रंगों से कई आगाह होने लगा है मुझको
उन्ही फामियों को इश्क़ का ख़बर बना दी।
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