एक अनमोल कश्मीर की कली
सुबह सुबह मेरे आँगन में खिली।
दिल उझाले से भरा - जैसा नूर
धरती पे उतरकर मुझसे मिली।
मुझे देखकर न जाने उसकी
आँखें उम्मीदों से झिलमिली।
गली से जब वह ग़ुज़री, तब मेरे
सन्नाटे दिल में इतनी खलबली।
एक आंधी सी आयी, और गयी- बस,
मेरी नज़रिया में थोड़ी सी धुंधली।
सूरज डूबने पर फिर उठेगी चांदनी
अब रह गया इंतज़ार-ए -सांवली।
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