बेहद कोशिश के बावजूद अक्सर जुबां फिसल जाता है।
न जाने गुस्से में क्या क्या मुँह से निकल जाता है।
शुकर करता हूँ, मेरी आखों का लाल क़ायम नहीं रहता
बर्फ की तरह मेरा ग़ुस्सा भी वक़्त के साथ पिगल जाता है।
मैं इतना भी बुरा नहीं , कि मुझमें अमन की गुंजाइश नहीं
मैं जानता हूँ कि वक़्त के साथ इंसान भी बदल जाता है।
जहां गुस्सा ज्यादा है, वहीँ पे प्यार भी ज़्यादा शामिल है
आख़िर , जिस तरफ हवा है, उसी तरफ बादल जाता है।
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