जो तूफ़ानों में खड़े रहे, झुके न कभी — वे याद रहें।
जो मिट्टी में मिल गए, पर झंडा ऊँचा कर पाए —वह याद रहें।
हर गली-कूचे में उनका नाम रोशन होना था - पर
सियासत के परदे में गुम हो जाए — वह याद रहें।
ना इज़्ज़त के मोहताज, ना तक़दीर के तालिब।
जो ख़ामोशी से सरहद पर जान लुटाए —वह याद रहें।
जश्न-ए-आज़ादी पर उनको भी बुलाना।
जो तनहाई में भी चिराग़-ए-वतन जलाए — वह याद रहें।
तिरंगे की खातिर जिनकी रूह कुर्बान हुई।
वो बेनाम सिपाही कभी न भुलाए — वह याद रहें।
"मनन" कहता है—अब खामोश न रहिए।
जो वतन पर मिट गए, उनको न भुलाए — वह याद रहें।
फिर, यह भी कुछ लोग हैं ।
जो हुक्मरां मंचों से वादे सुनाए।
पर मैदान-ए-जंग में साथ न निभाए — वह याद रहें।
जो महफ़िलों में चमकें, ख़बरों में छाए।
पर फ़ौजी के ज़ख़्मों को नज़र न आए — वह याद रहें।
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