Sunday, June 30, 2019

हारा नहीं हूँ

यह जानता हूँ कि किसीके
आँखों का ज़ारा नहीं हूँ।
पर, सूरजसी है मेरी नज़दीक़ी,
मैं कोई  ठूठा तारा हैं हूँ॥

ग़ुस्से के शोले अक्सर
निकलते हैं मुझसे।
पर दिलदार हूँ दोस्तों,
ज़रा भी खारा नहीं हूँ॥

तमाशा-ए-तक़दीर
कुछ ज़यादा ही संजीदा है।
जिसके  ग़ौर असर से
अभी तक सुधारा नहीं हूँ॥

ज़ख्म-ए-दिल में लड़ने की
ताक़त अब भी बची है, यारों।
रुख जाओ, मायूसियों से 
अभी तक हारा नहीं हूँ॥


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