Wednesday, January 8, 2020

नहीं समझता हूँ

हलके से बोलके देखो - इशारों को नहीं समझता हूँ
इश्क़ को बताकर देखो - नज़ारों को नहीं समझता हूँ। 

ज़िन्दगी के तूफानों से सख़्त तना हुआ हूँ, यारों  
आँधियों को आज़माकर देखो - बहारों को नहीं समझता हूँ।

वक़्त ज़वाल का है, और धुंदला रास्ता दिखता नहीं  
बत्ती की सख़-ज़रुरत है - सितारों को नहीं समझता हूँ।

महफ़िल में भी मुझ जैसा कोई नहीं मिला, राशिद 
मुझे तनहा ही छोड़ दो - सहारों को नहीं समझता हूँ।

न जाने क्यूँ दुश्मनों का क़ब्ज़ा भी प्यारा लगता है 
हमदर्दी नहीं मिलेगा मुझे - हमारों को नहीं समझता हूँ।

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