अक़्सर इंसान अपनी ही ख़ुशी में पागल बन जाता है।
आशिक़ बनकर किसीके पैर में पायल बन जाता है।
सूरज की किरणें चाहे कितना भी ढ़ले शहर पर, जब
मेहबूबा गली में गुज़रती है, वह बादल बन जाता है।
कच्ची उम्र हो, शायद तजुर्बा काम हो बन्दे को,
पर बहुत जल्दी प्यार करने में अव्वल बन जाता है।
मन बहुत करता है प्यार का इज़हार करने को
पर उसको देखते ही इसका चेहरा धवल बन जाता है।
महफ़िल-ए-इश्क़ में इंतज़ार का फल ज़रूर मीठा है
सनम का हर लफ़्ज़ लफ़्ज़ नहीं, ग़ज़ल बन जाता है।
आशिक़ बनकर किसीके पैर में पायल बन जाता है।
सूरज की किरणें चाहे कितना भी ढ़ले शहर पर, जब
मेहबूबा गली में गुज़रती है, वह बादल बन जाता है।
कच्ची उम्र हो, शायद तजुर्बा काम हो बन्दे को,
पर बहुत जल्दी प्यार करने में अव्वल बन जाता है।
मन बहुत करता है प्यार का इज़हार करने को
पर उसको देखते ही इसका चेहरा धवल बन जाता है।
महफ़िल-ए-इश्क़ में इंतज़ार का फल ज़रूर मीठा है
सनम का हर लफ़्ज़ लफ़्ज़ नहीं, ग़ज़ल बन जाता है।
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