समंदर से दरिया आज कुछ नाराज़ है
मुड़मुड़के देखने में भी कुछ राज़ है
नाशनीदा है ऐसी कोई गुलिस्ताँ
जिसको बहारों का छूने से कुछ ऐतराज़ है
दिन रात अब बेचैनी फैलाएगी सनम
बेदार रातों की सिर्फ यह आगाज़ है
तेरी अंगड़ाइयों से फ़रिश्ते भी रश्क़ हैं
कह देना की बस, यह तेरी अंदाज़ है
तेरी पैरों की पायल को संभल लेना
वह आवाज़-ए-प्यार सुनाने की साज़ है
पलकों को इतना भी भटकने न देना
मेरे दिल के वह इज़्न-ए-परवाज़ है
मुड़मुड़के देखने में भी कुछ राज़ है
नाशनीदा है ऐसी कोई गुलिस्ताँ
जिसको बहारों का छूने से कुछ ऐतराज़ है
दिन रात अब बेचैनी फैलाएगी सनम
बेदार रातों की सिर्फ यह आगाज़ है
तेरी अंगड़ाइयों से फ़रिश्ते भी रश्क़ हैं
कह देना की बस, यह तेरी अंदाज़ है
तेरी पैरों की पायल को संभल लेना
वह आवाज़-ए-प्यार सुनाने की साज़ है
पलकों को इतना भी भटकने न देना
मेरे दिल के वह इज़्न-ए-परवाज़ है
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