सदियों पुराने घरों के
दीवारें सब कच्चे थे।
पर बेशक, अंदर के
रिश्ते सब सच्चे थे॥
कितने भी बदर चाहे
हम क्यों न देखे हो।
बुज़ुर्गों के सामने
हमेशा सब बच्चे थे॥
दिन भर मौज मनाके घर
लौटे रेहम की तलाश में।
दादी की गोदी मिली
वह गोदी नहीं, गच्चे थे॥
हाथ में पैसा नहीं था , पर
ख़ुशी की कमी नहीं थी।
आज याद करता हूँ ,गुज़रे हुए
वह दिन सब अच्छे थे॥
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