यह जानता हूँ कि किसीके
आँखों का ज़ारा नहीं हूँ।
पर, सूरजसी है मेरी नज़दीक़ी,
मैं कोई ठूठा तारा हैं हूँ॥
ग़ुस्से के शोले अक्सर
निकलते हैं मुझसे।
पर दिलदार हूँ दोस्तों,
ज़रा भी खारा नहीं हूँ॥
तमाशा-ए-तक़दीर
कुछ ज़यादा ही संजीदा है।
जिसके ग़ौर असर से
अभी तक सुधारा नहीं हूँ॥
ज़ख्म-ए-दिल में लड़ने की
ताक़त अब भी बची है, यारों।
रुख जाओ, मायूसियों से
अभी तक हारा नहीं हूँ॥
आँखों का ज़ारा नहीं हूँ।
पर, सूरजसी है मेरी नज़दीक़ी,
मैं कोई ठूठा तारा हैं हूँ॥
ग़ुस्से के शोले अक्सर
निकलते हैं मुझसे।
पर दिलदार हूँ दोस्तों,
ज़रा भी खारा नहीं हूँ॥
तमाशा-ए-तक़दीर
कुछ ज़यादा ही संजीदा है।
जिसके ग़ौर असर से
अभी तक सुधारा नहीं हूँ॥
ज़ख्म-ए-दिल में लड़ने की
ताक़त अब भी बची है, यारों।
रुख जाओ, मायूसियों से
अभी तक हारा नहीं हूँ॥
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