न जाने किस फ़रिश्ते ने सिखाई।
तेरा हर शरारत प्यारा लगता है॥
मना करने के बावजूद सुनते नहीं हो।
यही बेफ़िक्री जुर्रत प्यारा लगता है॥
मेरे पल्लू को बार बार कींच लेते हो।
तब भी यह हरक़त प्यारा लगता है॥
साहिल में तुमने बनयाई रेत का महल।
युम्हारा अनमोल इमारत प्यारा लगता है॥
भीड़ में चाहे जितने भी बच्चें क्यों न हो।
लाखों में तेरा ही सूरत प्यारा लगता है॥
ज़िन्दगी के कर कदम में तरक़्क़ी तेरी।
तेरी उन्नति का हैरत प्यारा लगता है॥
तेरी ख़ैरियत का दुआं माँगूँ हर रोज़।
तेरी भलाई का हसरत प्यारा लगता है॥
तेरा हर शरारत प्यारा लगता है॥
मना करने के बावजूद सुनते नहीं हो।
यही बेफ़िक्री जुर्रत प्यारा लगता है॥
मेरे पल्लू को बार बार कींच लेते हो।
तब भी यह हरक़त प्यारा लगता है॥
साहिल में तुमने बनयाई रेत का महल।
युम्हारा अनमोल इमारत प्यारा लगता है॥
भीड़ में चाहे जितने भी बच्चें क्यों न हो।
लाखों में तेरा ही सूरत प्यारा लगता है॥
ज़िन्दगी के कर कदम में तरक़्क़ी तेरी।
तेरी उन्नति का हैरत प्यारा लगता है॥
तेरी ख़ैरियत का दुआं माँगूँ हर रोज़।
तेरी भलाई का हसरत प्यारा लगता है॥
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