रोज़ बाहर रिश्तों का मेला है,पर
मन में कुछ अजीब सा अलबेला है।
महफिलें चाहे जितने भी भरे हो
अंदर से हर इंसान अकेला है॥
यूँ गिरते संभलते चलना, जनाब
ज़िन्दगी का हर मोड़ पथरीला है॥
नाते जोड़कर भी तन्हा महसूस है
यह ही ज़िन्दगी का झमेला है॥
अब और मत पिलाओ बंधनों का शररब
होंटों की मीठी बोल भी ज़हरीला है॥
दिल-ए-ज़ख्म क्यूँ सीख़ता नहीं, अंजुम
कि रिश्तों का असर नुकीला है॥
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