यह बात अब बेकार है, कि हमने इस ज़हर क्यूँ पीया है।
आप बिछड़ गये, और न जाने हमने कैसे जीया है।
हमारी तक़िया गवाह है, तन्हा जागे हुए रातों का
अक्सर प्यास-ए-आप में खुद की अश्कें पीया है।
ज़क्मी दिल को अब कुछ भी चोट नहीं लगती
इस इश्क़ ने हमें कितना ख़ूबसूरत ग़म दिया है।
आपकी अजीब नवाज़िश को हम क्या मिसाल दें
आप क्या जानो, मेरे अंदर उसने क्या क्या किया है।
दो दिलों का मिलन की दुआ पूरी ज़रूर हुयी, पर
दहेज़ में हमारी चैन-ए-दिल को ले लिया है।
-Dilip-
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