हर प्यार की फ़ितरत में बेवफ़ाई हो जाती है।
कुछ दिन रहते हैं, फिर तन्हाई हो जाती है।
जैसे जैसे वक़्त गुज़रता है शाइराना अंदाज़ में,
चुनौती-ए-वफ़ाई की शनासाई हो जाती है।
लम्हों की महफ़िल में यादों की परछाई हो जाती है,
ख़ुशियों के दरमियाँ भी रुसवाई हो जाती है।
सफ़र-ए-इश्क़ में जो भी चलता है बेख़ौफ़,
उसे हर मोड़ पे इक आज़माई हो जाती है।
दिल की खामोशी भी अक्सर चीख़ सी लगती है,
नज़र से नज़र मिले तो सफ़ाई हो जाती है।
ग़म की किताब में लिखे हैं हज़ारों अफ़साने,
मगर हक़ीक़त में बस सच्चाई हो जाती है।
मनन ये दुनिया यूँ ही धोखा नहीं देती,
हर नक़ाब के पीछे रुसवाई हो जाती है।
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