पथा नहीं कब तक उस रात का इंतज़ार करूं
जब तुम्हारी हाथों कि मेहँदी को तारीफ करूं।
लेठा हूँ सूनी सेज में तुम्हारी सुहानी सपनों में
यह सोचके की इसी सेज में तुम्हारा दीदार करूं।
.
वह वक़्त कब आएगी जब मैं प्यार का इज़हार करूं
निगाहों में निगाहें डालके उल्फत का इकरार करूं।
एक पल की जुदाई भी मुद्दत सी लगती है
उम्मीद है उसी मुद्दत को तुम्हारी यादों से फरार करूं।
D
D
No comments:
Post a Comment