आँगन में बैठा, यादों में मैं खो जाता,
बचपन की तस्वीरें, फिर से जी उठती हैं ताजा।
फूलों की महक, तितलियों का उड़ान,
गर्मियों की रौनकें, दिल में बसी मुस्कान।
पतझड़ की पत्तियाँ, कोहरे की वह छाया,
चाँदी जैसा सूरज, सर्दियों का वह माया।
सोचता हूँ सर्दी, बिना वसंत का दिन,
कितनी बातें छूटीं, न देख पाया वो किन।
आँगन में बैठा, मैं बीते कल को गिनता,
दरवाजे पर कदमों की, आहटें सुनता जाता।
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