कभी दिल पर न किसी फ़िक्र का कोई मौसम-ए-शोर ,
हमारी राहों में बस सादगी का उजला-उजला नूर – था वो दौर ||
वो सुबहें जब धूप भी कच्चे जज़्बों की तरह काँपती थी,
मिट्टी की महक में सपनों का अपना ही मधुर ग़ुरूर – था वो दौर ||
टूटे पंखों से भी हम आसमानों की ओर बढ़ जाते थे,
हर टहनी में लगता था कोई देवता बैठा हुज़ूर – था वो दौर ||
पुराने बस्तों में काग़ज़ का संसार था, पर कितना जीवंत,
हर पन्ने पर बचपन की धड़कनों का बीता हुआ सफ़र – था वो दौर ||
साइकिल की साँसों पर दोस्त हँसी के झोंके रख देते थे,
हर मोड़ पे लगता था दुनिया में बस मोहब्बत हज़ार-नूर – था वो दौर ||
डाँट भी थी तो जैसे किसी दुआ का धीमा-धीमा स्पर्श,
किसी ताने में भी मीठा-सा माँ का कोई दस्तूर – था वो दौर ||
नंगे पैरों की गली-क्रीड़ा में समा जाती थी कायनात,
लकड़ी की बल्ला-गेंद से भी खुल जाता था हर सुरूर – था वो दौर ||
जेब-ख़र्च माँगने की चाह भी दिल में जन्म न ले पाती थी,
एक टॉफी से ही मन हो जाता था रूहानी ज़र्रानूर – था वो दौर ||
दीवाली में पटाखों की लड़ तोड़–तोड़ कर जलाते थे,
चिंगारियों में अपना ही चेहरा दिखता था भरपूर – था वो दौर ||
“मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ” कहना हमको आता ही कहाँ,
मगर हर धड़कन में माता-पिता का चुपचाप दस्तूर – था वो दौर ||
दुनिया ने हिला डाला, सच की बरसाती ठंडक ने छू लिया,
पर दिल का बच्चा अब भी पीछे मुड़कर लेता है दूर-दूर – था वो दौर ||
मनन कहता है—यादों की चौखट पर आज भी धुआँ-सा उठता हूँ,
कोई रात अचानक बचपन की रौशनी ले आए हुज़ूर – था वो दौर ||
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