पूर्णिमा की एक रात हमारी मुलाक़ात की मुकुट बनी
नदी के किनारे तेरे साथ रातों की रात ज़रूर बनी।
सन्नाटे के चद्धर में छुपे थे, चांदनी की नज़र न लगे हमें
एकांत में हम डूबे थे संसार की पुकारें न सताए हमें।
तुम्हारी आन से रात कि कलि भी शर्मा गयी थी
तुम्हारी चलने से हवा कि लहर भी थम गयी थी।
साँसों को अपनी खुशबूओं से भरने का वादा की थी
तेरी रंगों से मेरी दिल को सजाने की वादा की थी ।
एक ही बार मिली थी इसी नदी के किनारे पर
फिर छोडकर चली गयी, मुझे शोक के साहिल पर।
यार की मेहँदी भरी हातें फिर मुझे चाहिए
बस बिछडा हुआ प्यार फिर मुझे चाहिए।
नदी के किनारे तेरे साथ रातों की रात ज़रूर बनी।
सन्नाटे के चद्धर में छुपे थे, चांदनी की नज़र न लगे हमें
एकांत में हम डूबे थे संसार की पुकारें न सताए हमें।
तुम्हारी आन से रात कि कलि भी शर्मा गयी थी
तुम्हारी चलने से हवा कि लहर भी थम गयी थी।
साँसों को अपनी खुशबूओं से भरने का वादा की थी
तेरी रंगों से मेरी दिल को सजाने की वादा की थी ।
एक ही बार मिली थी इसी नदी के किनारे पर
फिर छोडकर चली गयी, मुझे शोक के साहिल पर।
यार की मेहँदी भरी हातें फिर मुझे चाहिए
बस बिछडा हुआ प्यार फिर मुझे चाहिए।
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