ग़म-ए-प्यार छुपता नहीं, छुपाने से।
मज्बूर हूँ, उल्फत दबता नहीं, दबाने से।
मेरी वीरान रातें राख़ हो रही हैं, सनम
यह आग-ए-मोहब्बत बुझती नहीं, बुझाने से।
अंजान बनकर मुझे सताना बेकार है
आजकल मेरा दिल दुखता नहीं, दुखाने से।
साक़ी के जाम में खुद को खैर डुबाता हूँ
पर तेरी यादें हरग़िज़ डूबते नहीं, डुबाने से।
तेरी कश्ती चाहे मुझसे कितनी भी दूर चली जाए
साहिल में क़दमों के निशां मिटता नहीं, मिटाने से।
💞D💞
No comments:
Post a Comment