सूरज ढले, गाँव सोए, क्या कहें हम ज़िंदगी की बात
खामोशी में गूँजती है मौत की सदियों पुरानी बात।
पेड़ों की छाँव में सोते हैं वो जो कभी थे ज़िंदा
मिट्टी में मिल गए, अब क्या करें उनकी यादों की बात।
गरीबी ने रोका उनको, न जाने क्या-क्या कर सकते थे
किसी में था राजा बनने का दम, किसी में कवि की बात।
समंदर की गहराई में छिपे मोती की तरह थे वो
बिना देखे, बिना जाने चली गई उनकी अनकही बात।
सादगी से जीए, चुपचाप चले गए इस दुनिया से
उनके नाम पत्थर पर लिखे, यही है उनकी आखिरी बात।
कौन नहीं चाहता याद किया जाए उसे जाने के बाद
हर किसी के दिल में होती है अपनी पहचान की बात।
प्रकृति की गोद में लेटे हुए, ख्व्वाबें थीं उनकी दोस्त
कभी पेड़ के नीचे, कभी पहाड़ी पर, बस यही थी उनकी बात।
एक दिन वो भी चले गए, जैसे सब चले जाते हैं
कब्र पर लिखा है उनका नाम, बस यही है आखिरी बात।
ऐ 'गामडिया', तू भी एक दिन जाएगा इसी तरह
तेरी कविता में रहेगी तेरी और सबकी कहानी की बात।
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