धरम और न्याय की बातें करते हैं, लेकिन क्या है सच्चाई
इतिहास गवाह है, पर कौन समझे इस दुनिया की सच्चाई।
माँ का प्यार भुलाकर, अपने को वीर कहलाते हैं
छल-कपट में लिप्त, कहाँ है उनके दावों की सच्चाई।
बेज़ुबान औरतों के जीवन में ज़हर घोलते हैं
कर्म और भाग्य का रोना रोते, कहाँ है उनकी सच्चाई।
ईश्वर पर दोष मढ़ते हैं, अपनी गलती छिपाते हैं
मुँह पर एक, दिल में दूसरी, क्या है इनकी सच्चाई।
इन बातूनी वीरों से सावधान रहना ज़रूरी है
आँख खुली रखनी होगी, तभी समझ पाएंगे सच्चाई।
धोखे की दुनिया में एक दिन ऐसा भी आएगा
जब हर तरफ होगी केवल अच्छाई और सच्चाई।
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