इश्क़ का सफ़र है, आसान कहाँ होता,
दिलों का मिलना, फ़रमान कहाँ होता।
हर घड़ी में उलझन, हर राह है मुश्किल,
इक ख़्वाब सजीला, अरमान कहाँ होता।
आशिक़ की तमन्ना, दरिया की रवानी,
तूफ़ान का रुख़, परवान कहाँ होता।
हमने जो चाहा, वो पाया नहीं लेकिन,
हर हाल में जीना, इम्तिहान कहाँ होता।
ग़म से गुज़र के, जो सुकून मिले दिल को,
वो रातों का चैन, फ़रहान कहाँ होता।
दुनिया के हिसाब में सब ठीक है लेकिन,
जो दिल की सदा हो, बयान कहाँ होता।
राहें हैं अंधेरी, मंज़िल भी अधूरी,
हर एक क़दम पे, इनाम कहाँ होता।
तू साथ है मेरे, ये ख़ुश्बू सी हवा है,
दूरी में भी तुझसे, पनाहाँ कहाँ होता।
इक रोज़ ख़तम होगा ये खेले तमन्नाओं का,
इस खेल में जीते, नादान कहाँ होता।
हम दर्द को जीते, हमने तो यही पाया,
दिल के सफ़र में, दरमियान कहाँ होता।
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